वैज्ञानिकों की नई खोज, शरीर में ही मिला सभी तरह के कैंसर से लड़ने वाला अनोखा 'सेल'

वैज्ञानिकों की नई खोज, शरीर में ही मिला सभी तरह के कैंसर से लड़ने वाला अनोखा 'सेल'

सेहतराग टीम

शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी रोगों से लड़ने की क्षमता कई बीमारियों से बचाती है और अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कैंसर से लड़ा जा सकता है। यह तकनीक तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाएं (टीएलएस) इस इलाज में कारगर साबित हुई हैं। हाल के वर्षों में, डॉक्टरों ने कैंसर, इम्यूनोथेरेपी के नए उपचार की ओर रुख किया है, जो ट्यूमर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का लाभ उठाकर काम करता है। साइंस जर्नल "नेचर" में इस उपचार से संबंधित तीन शोध प्रकाशित हुए हैं। जो दुनिया के अलग देशों के वैज्ञानिकों की ओर से आए हैं।

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शोध में बताया गया है कि श्वेत रक्त कोशिकाएं या टी-सेल्स ट्यूमर को मारने का काम कैसे करती हैं। कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और उन पर हमला करने के लिए यह "प्रशिक्षित" होती हैं। हालांकि यह उपचार केवल 20 प्रतिशत रोगियों पर ही बेहतर काम कर रहा है। शोधकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों कुछ ही मरीज इस इलाज में बेहतर परिणाम दे रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने बताया कि ट्यूमर या कैंसर पर बनी कुछ कोशिकीय संरचनाएं शरीर को कैंसर से लड़ने में मदद करने के लिए "कारखानों या स्कूलों" जैसे काम करती हैं। पेरिस डेकार्टी यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के कॉर्डेलिए रिसर्च सेंटर में इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर वुल्फ फ्रीडमैन ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, इन टी-कोशिकाओं को तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाओं के 'स्कूलों' में शिक्षित करने की आवश्यकता है। जहां वे प्रभावी रूप से कैंसर कोशिकाओं को पहचाकर उन पर हमला करना सीख सकते हैं।

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रिसर्च का निष्कर्ष है कि केवल टी-सेल ही कैंसर से लड़ने में सक्षम नहीं हैं बल्कि ऐसे कुछ और एजेंट भी शरीर में हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाएं या टीएलएस, बी-सेल से भरी हुई थीं, जो भी एंटीबॉडी का उत्पादन करने वाली एक तरह की प्रतिरक्षा कोशिकाएं हैं। प्रोफेसर फ्रीडमैन ने बताया, "हम 15 साल से टी-सेल से ही कैंसर को खत्म करने के आदी बन चुके हैं। हमने यह देखने के लिए सारकोमा जैसे कैंसर का विश्लेषण किया कि उनके पास कौन से समूह हैं. जो कैंसर से लड़ सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप हमारे पास बी-कोशिकाएं आईं।

अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के एंडरसन कैंसर सेंटर में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग की डॉक्टर बेथ हेल्मिंक कहती हैं कि इस खोज ने इम्यूनोथेरेपी में बी-कोशिकाओं से जुड़ी धारणाओं को बदल दिया है। बेथ के मुताबिक, इन अध्ययनों के माध्यम से हमने पाया कि बी-कोशिकाएं ट्यूमर-विरोधी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए एक सार्थक तरीके से योगदान दे रही हैं।

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इस खोज में कई आश्चर्यजनक बातें सामने आई हैं। पहले कैंसर रोगियों में बी-कोशिकाओं की बहुतायत को ज्यादातर खराब रोग के रूप में देखा जाता रहा है। इसके उलट अध्ययन में पाया गया कि उनके ट्यूमर में टीएलएस के अंदर बी- कोशिकाओं के उच्च स्तर वाले रोगियों में इम्यूनोथेरेपी के लिए अच्छी प्रतिक्रिया की संभावना होती हैं।

बार्ट्स एंड लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड डेंटिस्ट्री में लेक्चरर लुईसा जेम्स कहती हैं, अध्ययन की यह श्रृंखला रोमांचक इसलिए भी है क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने में सक्षम है। हालांकि जेम्स इस अध्ययन में शामिल नहीं थीं, उन्होंने इस शोध को पढ़ने के बाद कहा, कम समय में ही इस शोध के परिणामस्वरूप रोगियों को इम्यूनोथेरेपी से लाभ होने की संभावना के लिए नया टूल मिल जाएगा। जिससे भविष्य में बेहतर उपचार का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है।

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कैंसर के सभी प्रश्नों का जवाब नहीं है यह शोध-

हालांकि अभी भी कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर नहीं मिल पाए हैं. जैसे कि ऐसी संरचनाएं कुछ ही तरह के ट्यूमर में क्यों बनती हैं और बाकी में नहीं। यह स्पष्ट हो गया है कि इन्ही संरचनाओं के अंदर पाई जाने वाली बी-कोशिकाएं इम्यूनोथेरेपी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन ऐसा कैसे होता है इसका उत्तर अब तक वैज्ञानिकों के पास नहीं है।

यह हो सकता है कि बी-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए आगे आती हों और एंटीबॉडी का निर्माण करती हों। सभी टीएलएस समान नहीं होते। शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं की तीन श्रेणियां पाईं लेकिन केवल एक कोशिका कैंसर को मात देने में "परिपक्व" पाई गई।

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विशेषज्ञों का कहना है कि इस रिसर्च ने कई आशाजनक रास्ते खोले हैं। यह शोध डॉक्टरों को उन मरीजों का इलाज करने में मदद कर सकता है जो इम्यूनोथेरेपी के लिए अच्छी प्रतिक्रियाएं देते हैं। स्वीडन के लुंथ विश्वविद्यालय में ऑन्कोलॉजी और पैथोलॉजी के प्रोफेसर गोरान जॉनसन ने इनमें से एक अध्ययन पर काम किया है. जॉनसन बताते हैं, अगर कोई ऐसा उपचार विकसित किया जा सके जिससे टीएलएस के निर्माण को बढ़ाया जा सके, तो हम इसे आजकल की इम्यूनोथेरेपी रेजिमेंट के साथ जोड़ कर इलाज कर सकते हैं। उनका मानना है कि इससे ज्यादा से ज्यादा रोगियों में इम्यूनोथेरेपी का असर दिखेगा।

(खबर- साभार)

 

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